पल्लव की डायरी तालमेल के अभावो में नफरते सिर उठा रही है बहकी बहकी संसद है गुमराह सरकारे आ रही है नही सरोकार जनता से है एजेंडे अपने सत्ता में बने रहने का चला रही है रीत गयी इनकी राष्ट्रभक्ति एक सौ चालीस करोड़ो को तड़पाने की नीति बना रही है चट कर गयी सारा बजट तमाशा धर्मो पर करती है संवेदन हीनता नस इस मे हो जिनके वो हरण साधुत्व का करती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Dullness रीत गयी इनकी राष्ट्रभक्ति