क्या करूं मैं तुम्हारे भुलाये ना जाने वाले होंठो को चूम कर मुझे तो तुम्हारे माथे पर बोसा देना है जहां चूम कर एक तीसरा नेत्र स्थापित कर सकूं... और तुम भस्म कर सको उन सभी आंखों को जिनका देखना तुम्हे परेशां करता है तो शायद मैं याद रख पाऊंगा अपने चुम्बन के स्पर्श को... मैं तुम्हें गुलाब क्या दूं कुछ दिनों में उड़ जाएगी उसकी ख़ुशबू... देना चाहता हूं तुम्हें तुम्हारे ख़्वाब जो पूरे करोगी तो हंसोगी ज़ोर से शायद मेरी आंखों में झांक कर तो शायद मैं हँस पाऊंगा किसी सफ़ेद गुलाब की तरह...