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पहाड़ों में थोड़ी सी हलचल भी शरीर के साथ-साथ दिमाग

पहाड़ों में थोड़ी सी हलचल भी शरीर के साथ-साथ दिमाग में सिहरन पैदा कर ही देती हैं। सूखे पतों की सरसराहट भी कँपा देने वाली होती हैं। पहाड़ दूर से जितने खूबसूरत और शांत दिखते हैं उतने ही गहरे राज दफ़न होते हैं इसके सीने में। 
(Read in caption) 
Part- 1

शांत वातावरण, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली, टेढे़-मेढे़ साँप की तरह रेंगते रास्ते। हल्की ठिठुरन  महसूस होगी पर आदत पड़ जाएगी। ठंडी हवा की पुरवाई आपके तन के साथ-साथ आपके मन को कब के छू कर निकल गई हैं आपको पता ही नहीं चलता।

पहाड़ों में थोड़ी सी हलचल भी शरीर के साथ-साथ  दिमाग में सिहरन पैदा कर ही देती हैं। सूखे पतों की सरसराहट भी कँपा देने वाली होती हैं। और समय अगर रात का हो तो भगवान ही मालिक हैं आपका। पहाड़ दूर से जितने खूबसूरत और शांत दिखते हैं उतने ही गहरे राज दफ़न होते हैं इसके सीने में।

मंगतू ऐसे ही एक रात को बाजार से अपने गाँव जा रहा था। उस समय ना ही कोई सड़क, यातायात का वाहन कुछ नहीं था। गाँव के लोग अक्सर झुंड में ही जाते थे। मंगतू के साथ काफी लोग थे कारवाँ बढ़ता गया और वो चलता रहा। सबकी मंजिल आती गाई और लोग कम होते गए। मंगतू को रात भी श्यामपट्ट की तरह महसूस हो रही थी। जिसमें तारे कढा़ई का काम कर रहे थे। आखिर मैं वो अकेला रह गया। कहने को साथ में बस एक ही सहारा था उसकी आवाज़। मंगतू को गाने का बहुत शौक था। हाथ में टार्च, कंधे में सामान और उसकी आवाज। मंगतू गीत गुनगुना रहा था- बेडू पाकू बारहमासा, नरायणी कफूल पाको चेता मेरी छेला।
पहाड़ों में थोड़ी सी हलचल भी शरीर के साथ-साथ दिमाग में सिहरन पैदा कर ही देती हैं। सूखे पतों की सरसराहट भी कँपा देने वाली होती हैं। पहाड़ दूर से जितने खूबसूरत और शांत दिखते हैं उतने ही गहरे राज दफ़न होते हैं इसके सीने में। 
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Part- 1

शांत वातावरण, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली, टेढे़-मेढे़ साँप की तरह रेंगते रास्ते। हल्की ठिठुरन  महसूस होगी पर आदत पड़ जाएगी। ठंडी हवा की पुरवाई आपके तन के साथ-साथ आपके मन को कब के छू कर निकल गई हैं आपको पता ही नहीं चलता।

पहाड़ों में थोड़ी सी हलचल भी शरीर के साथ-साथ  दिमाग में सिहरन पैदा कर ही देती हैं। सूखे पतों की सरसराहट भी कँपा देने वाली होती हैं। और समय अगर रात का हो तो भगवान ही मालिक हैं आपका। पहाड़ दूर से जितने खूबसूरत और शांत दिखते हैं उतने ही गहरे राज दफ़न होते हैं इसके सीने में।

मंगतू ऐसे ही एक रात को बाजार से अपने गाँव जा रहा था। उस समय ना ही कोई सड़क, यातायात का वाहन कुछ नहीं था। गाँव के लोग अक्सर झुंड में ही जाते थे। मंगतू के साथ काफी लोग थे कारवाँ बढ़ता गया और वो चलता रहा। सबकी मंजिल आती गाई और लोग कम होते गए। मंगतू को रात भी श्यामपट्ट की तरह महसूस हो रही थी। जिसमें तारे कढा़ई का काम कर रहे थे। आखिर मैं वो अकेला रह गया। कहने को साथ में बस एक ही सहारा था उसकी आवाज़। मंगतू को गाने का बहुत शौक था। हाथ में टार्च, कंधे में सामान और उसकी आवाज। मंगतू गीत गुनगुना रहा था- बेडू पाकू बारहमासा, नरायणी कफूल पाको चेता मेरी छेला।
shashirawat3736

Shashi Aswal

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