रात के अंधेरे में अकेली सड़क पे खुद को समेटते चली जा रही थी आंखों में खौफ का दर्द भरा था दिल की धड़कनें भी बड़ी तेज थी एक अनजाना सा डर सता रहा था कहने को तो बर्फीली सर्द रातें थी मगर माथे पे पसीने की बूंदे भरी थी सर्द हवाएं भी गर्म सी लग रही थी थोड़ी सी दूरी भी बहुत लग रही थी एक लड़की होने का डर सता रहा था अंदर ही अंदर बहुत घबरा रही थी जाने किस ओर से कौन आ जाएगा एक अनजानी सी सूरत सामने आ रही थी कहने को तो मैं सशक्त हूं बहुत तेज भी हूं लेकिन फिर भी हूं तो मैं एक लड़की ही इंसानों के भेष में हैवानों की कमी नहीं है बातें करें चाहे हम जितनी भी बड़ी-बड़ी दरिंदों की हैवानियत हमेशा ही मुंह खोले खड़ी जब नारी सुरक्षित नहीं है अपने घरों में भी यह तो है सुनसान सी गली जहां हूं मैं अकेली भगवान का नाम लेकर तेज कदमों से चली जा रही जल्दी कटे रस्ता जल्दी बीते सुनसान सी गली जब तलक सही सलामत घर ना पहुंच जाऊं तब तलक चिंता है बिल्कुल भी नहीं टली जानती हूं अच्छी तरह से आज भी सुरक्षित नहीं कोई सुनसान सड़क और न कोई गली। -"Ek Soch" इस पर collab कीजिए। आपके मन में जो भी है, अब व्यक्त कीजिए। "अंधेरा" एक ऐसी चीज है जो बहुत सरलता से आति है पर दिन की रौशनी को अंधेरा कभी छुपा नहीं पाता। अपने रचना को कविता का रूप दीजिए। हमे आप सबके रचना का इंतजार रहेगा। अपने हृदयस्पर्शी रचना से सबको प्रेरणा दे 🙏 💕सारे रचनाओ से केवल एक रचना हम सर्वोत्तम घोषित करेंगे। 💕 🙏धन्यवाद 🙏