बहता दरिया श्वासों का रुकने सा लगता है घाव कोई इक पुनः पुनः दुखने सा लगता है दिन होता वो ऐसा जिसकी रात नहीं होती हर घड़ी सुलगती है जब तुमसे बात नहीं होती मौन पसर जाता है कोई भाव नहीं जगता हृदय के स्पंदन का भी कोई लक्ष्य नहीं दिखता काव्य पड़ा निष्प्राण लेखनी भी रहती सोती हर घड़ी सुलगती है जब तुमसे बात नही होती मन के कोमल बंधन का कोई अर्थ ना रह जाता जब एक हृदय की पीड़ा दूजा ही ना समझ पाता फ़िर मूक व्यथा शब्दों के मरहम में संबल टोहतीं हर घड़ी सुलगती है जब तुमसे बात नहीं होती Anjali राज सुप्रभात। बहता दरिया साँसों का जिसमें नाव हमारे जीवन की खाती हिचकोले। #साँसकादरिया #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #अंजलिउवाच #बात #रात