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आज से कुछ तीन साल पहले, मैं अपनी आदत के मुताबिक रा

आज से कुछ तीन साल पहले, मैं अपनी आदत के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद छत पर गाने गुनगुनाते हुए टहल रही थी की तभी टाँगों पर किसी की छुअन का एहसास हुआ, मैंने फौरन पलट कर देखा तो वो मुस्कुरा रहा था। ये पहली बार था जब उसने मुझे छुआ था और पता नहीं क्यों मैं उस छुअन को मैं समझ नहीं पाई उस वक़्त या शायद समझ कर भी भरोसा नहीं कर आया रही थी। मैंने उससे पूछा "क्या हुआ?" उसने जवाब में उसी मुस्कुराहट के साथ कहा "कुछ नहीं।" मैं छत के दूसरे कोने में चली गयी, उसे नजरअंदाज करने के लिए और वो वहीं बैठा रहा उस मुस्कुराहट के साथ, कुछ देर बाद मैं नीचे आ गयी छत पर जो हुआ उसके बारे में सोचा और फिर खुद को समझाया कि शायद मैं गलत समझ रही हूँ उसे, बचपन से जानती हूँ उसे फिर भी। 

दो-चार दिन बाद मेरे बाथरूम के बाहर कोई स्पर्म छोड़ गया था, उस वक़्त वहाँ उस मंजिल पर अकेली थी मैं और ये बात वो शख़्स जानता था। उस लम्हे ने झकझोर दिया था मुझे अंदर तक, कुछ पल को जैसे पत्थर हो गयी थी मैं, ऐसा नहीं है कि बदतमीजी पहले कभी नहीं हुई, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था। मेरे आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और पहली बार मुझे अपने ही घर में डर लग रहा था। मम्मी और भाई घर आए तो समझ नहीं आया उन्हें क्या बताऊँ, फिर कोशिश करके मम्मी को बताया लेकिन....न किसी को आते देखा न जाते तो इल्ज़ाम भी किस पर लगाती। रोकर शांत हो गयी लेकिन मन में ख़ौफ़ बैठ गया था इस बात का की अगले कुछ घंटों या मिनटों में पता नहीं क्या हो जाएगा। कुछ देर के लिए भी अकेले रहने से डर लगने लगा था।  

कुछ दिन और बीते फिर, जब एक दिन मैं छत पर अपने बालों को सुखा रही थी तब वो भी छत पर आ गया, मैंने चाहा कि नीचे वापस चली जाऊँ लेकिन तभी उसने कहा "दीदी एक बात कहूँ?" मुझे लगा शायद जो मैं सोच रही हूँ वो गलत है, फिर मैंने वहीं सीढ़ियों पर बैठते हुए कहा "हाँ बोल क्या हुआ" मेरे इतना कहते ही जिस तरह वो मेरे करीब आने लगा मुझे सब साफ़ समझ आ गया। पीछे हटते   हुए मैंने कहा "पूछ" मैं उसके मुँह से सुनना चाहती थी कि वो क्या कहता है ताकि उसके माता पिता को बताने के लिए मेरे पास उसके शब्द हों। उसने कहा "तुम मुझे बहूत पसंद हो, मेरी गर्लफ्रैंड बनोगी?" उस वक़्त वो जिन नज़रों से मुझे देख रहा था वो किसी प्रेमी की नहीं बल्कि धाक लगाए बैठे किसी गिद्ध की तरह थी। इतना सुनते ही बीते दिनों में मेरे साथ हुई एक एक चीज़ कड़ी से बँध गयी, जी चाहा कि उसके गालों पर एक ज़ोरदार तमाचा लगा दूँ लेकिन नहीं लगा पाई, घिन आ रही थी मुझे उससे। मैं तुरंत नीचे आई और क्योंकि दिन रविवार का था तो घर में कुछ मेहमान आए हुए थे, मैं उनके जाने का इंतजार करने लगी लेकिन गुज़रे दिनों जिन भयानक लम्हों को मैंने जिया था उन्हें सोच कर डर से पहली बार मेरे हाथ पैर काँप रहे थे। मैं कमज़ोर नहीं हूँ लेकिन इतनी मज़बूत भी नहीं कि सब झेल जाऊँ। मेहमानों के जाते ही मैंने रोते रोते घर में सबकुछ बताया, माँ-पापा उसके घर गए, वहाँ जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि उसने तो कुछ किया ही नहीं। 

कुछ देर बाद उसकी माँ घर आई, मुझसे पूछा क्या हुआ था, मैंने भी सबकुछ बताया उन्हें और कहा कि मेरे सामने अपने बेटे से पूछिए। मेरे कहने पर उसके पापा उसे मेरे घर लाए और मैंने उससे सवाल करना शुरू किया, बहुत देर की चुप्पी के बाद उसने स्वीकारा लेकिन जब मैंने वो बाथरूम वाली हरकत के लिए उससे जवाब माँगा तो वो चुप था। हाँलाकि ये सब समझ गए थे कि वो सभी हरकतें उसी ने की थी, फिर भी उसकी माँ ने मुझे कहा "तूने ही कुछ किया होगा, मेरा बेटा यूँ ही तो ऐसा नहीं करेगा।" आसान शब्दों में वो मुझे "चरित्रहीन" कह रही थी, सुनने हैं आसान सा शब्द है लेकिन यक़ीन मानिए जिस पल इस शब्द को कोई आपके लिए इस्तेमाल करता है, उस पल जो चोट लगती है दिल पर वो कभी भरती नहीं है। ये वो शब्द थे जिन्हें मैं आख़िरी साँस तक भूल नहीं पाऊँगी। जिस चरित्र पर कभी एक तिनका भी नहीं उठा था, उस दिन मेरे उस चरित्र को गाली दी गयी थी जिसने सीधा आत्मा को जख़्मी किया था। 

उस दिन मैं इस सच से रूबरू हुई कि, मैं जिस समाज में रह रही हूँ वहाँ पुरुष चाहे जितनी भी बड़ी ग़लती करे लेकिन दोषी हर बार स्त्री को ही ठहराया जाएगा।

©अgni #life #ज़िन्दगी #चरित्रहीन  #मेरी_कहानी #अग्नि
आज से कुछ तीन साल पहले, मैं अपनी आदत के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद छत पर गाने गुनगुनाते हुए टहल रही थी की तभी टाँगों पर किसी की छुअन का एहसास हुआ, मैंने फौरन पलट कर देखा तो वो मुस्कुरा रहा था। ये पहली बार था जब उसने मुझे छुआ था और पता नहीं क्यों मैं उस छुअन को मैं समझ नहीं पाई उस वक़्त या शायद समझ कर भी भरोसा नहीं कर आया रही थी। मैंने उससे पूछा "क्या हुआ?" उसने जवाब में उसी मुस्कुराहट के साथ कहा "कुछ नहीं।" मैं छत के दूसरे कोने में चली गयी, उसे नजरअंदाज करने के लिए और वो वहीं बैठा रहा उस मुस्कुराहट के साथ, कुछ देर बाद मैं नीचे आ गयी छत पर जो हुआ उसके बारे में सोचा और फिर खुद को समझाया कि शायद मैं गलत समझ रही हूँ उसे, बचपन से जानती हूँ उसे फिर भी। 

दो-चार दिन बाद मेरे बाथरूम के बाहर कोई स्पर्म छोड़ गया था, उस वक़्त वहाँ उस मंजिल पर अकेली थी मैं और ये बात वो शख़्स जानता था। उस लम्हे ने झकझोर दिया था मुझे अंदर तक, कुछ पल को जैसे पत्थर हो गयी थी मैं, ऐसा नहीं है कि बदतमीजी पहले कभी नहीं हुई, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था। मेरे आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और पहली बार मुझे अपने ही घर में डर लग रहा था। मम्मी और भाई घर आए तो समझ नहीं आया उन्हें क्या बताऊँ, फिर कोशिश करके मम्मी को बताया लेकिन....न किसी को आते देखा न जाते तो इल्ज़ाम भी किस पर लगाती। रोकर शांत हो गयी लेकिन मन में ख़ौफ़ बैठ गया था इस बात का की अगले कुछ घंटों या मिनटों में पता नहीं क्या हो जाएगा। कुछ देर के लिए भी अकेले रहने से डर लगने लगा था।  

कुछ दिन और बीते फिर, जब एक दिन मैं छत पर अपने बालों को सुखा रही थी तब वो भी छत पर आ गया, मैंने चाहा कि नीचे वापस चली जाऊँ लेकिन तभी उसने कहा "दीदी एक बात कहूँ?" मुझे लगा शायद जो मैं सोच रही हूँ वो गलत है, फिर मैंने वहीं सीढ़ियों पर बैठते हुए कहा "हाँ बोल क्या हुआ" मेरे इतना कहते ही जिस तरह वो मेरे करीब आने लगा मुझे सब साफ़ समझ आ गया। पीछे हटते   हुए मैंने कहा "पूछ" मैं उसके मुँह से सुनना चाहती थी कि वो क्या कहता है ताकि उसके माता पिता को बताने के लिए मेरे पास उसके शब्द हों। उसने कहा "तुम मुझे बहूत पसंद हो, मेरी गर्लफ्रैंड बनोगी?" उस वक़्त वो जिन नज़रों से मुझे देख रहा था वो किसी प्रेमी की नहीं बल्कि धाक लगाए बैठे किसी गिद्ध की तरह थी। इतना सुनते ही बीते दिनों में मेरे साथ हुई एक एक चीज़ कड़ी से बँध गयी, जी चाहा कि उसके गालों पर एक ज़ोरदार तमाचा लगा दूँ लेकिन नहीं लगा पाई, घिन आ रही थी मुझे उससे। मैं तुरंत नीचे आई और क्योंकि दिन रविवार का था तो घर में कुछ मेहमान आए हुए थे, मैं उनके जाने का इंतजार करने लगी लेकिन गुज़रे दिनों जिन भयानक लम्हों को मैंने जिया था उन्हें सोच कर डर से पहली बार मेरे हाथ पैर काँप रहे थे। मैं कमज़ोर नहीं हूँ लेकिन इतनी मज़बूत भी नहीं कि सब झेल जाऊँ। मेहमानों के जाते ही मैंने रोते रोते घर में सबकुछ बताया, माँ-पापा उसके घर गए, वहाँ जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि उसने तो कुछ किया ही नहीं। 

कुछ देर बाद उसकी माँ घर आई, मुझसे पूछा क्या हुआ था, मैंने भी सबकुछ बताया उन्हें और कहा कि मेरे सामने अपने बेटे से पूछिए। मेरे कहने पर उसके पापा उसे मेरे घर लाए और मैंने उससे सवाल करना शुरू किया, बहुत देर की चुप्पी के बाद उसने स्वीकारा लेकिन जब मैंने वो बाथरूम वाली हरकत के लिए उससे जवाब माँगा तो वो चुप था। हाँलाकि ये सब समझ गए थे कि वो सभी हरकतें उसी ने की थी, फिर भी उसकी माँ ने मुझे कहा "तूने ही कुछ किया होगा, मेरा बेटा यूँ ही तो ऐसा नहीं करेगा।" आसान शब्दों में वो मुझे "चरित्रहीन" कह रही थी, सुनने हैं आसान सा शब्द है लेकिन यक़ीन मानिए जिस पल इस शब्द को कोई आपके लिए इस्तेमाल करता है, उस पल जो चोट लगती है दिल पर वो कभी भरती नहीं है। ये वो शब्द थे जिन्हें मैं आख़िरी साँस तक भूल नहीं पाऊँगी। जिस चरित्र पर कभी एक तिनका भी नहीं उठा था, उस दिन मेरे उस चरित्र को गाली दी गयी थी जिसने सीधा आत्मा को जख़्मी किया था। 

उस दिन मैं इस सच से रूबरू हुई कि, मैं जिस समाज में रह रही हूँ वहाँ पुरुष चाहे जितनी भी बड़ी ग़लती करे लेकिन दोषी हर बार स्त्री को ही ठहराया जाएगा।

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