श्रमिक चिल चिलाती धूप में स्वेद रक्त से लथपथ मजबूरी ऐसी कि विश्राम करने के लिए भी वक्त कम दर्द का अलग ही मंजर सीने में समाए हुए है समंदर ऐसी हालत में देख किसके मन में न उठे बवंडर लोगों के व्यवहार से बन गया उसका दिल खंडहर श्रमिक वर्ग अब यही सोचता खामोश रहूँ बेहतर है जो हुआ मुक़द्दर है । ©Rakesh Kumar Das #childlabour