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पल्लव की डायरी विद्या के द्वार विनय से शून्य हो गय

पल्लव की डायरी
विद्या के द्वार विनय से शून्य हो गये
परिभाषित ज्ञान व्यवसाय के अधीन हो गये
कैसे उज्ज्वल हो राष्ट्र और समाज
शिक्षा के क्षेत्र व्यवसायीकरण के मोहताज हो गये
सियासी दाँव पेंच में फँसकर कराहते गुरु
भविष्य संस्कारो से खाली हो रहै है
पनपती उद्दंडता शिष्यों में
शिक्षकों के रुतबे कम हो रहै है
                                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  शिक्षकों के रुतबे कम हो रहे है
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