हम बहे जैसे सागर की लहर, चल दिए भरी धूप में दे साया जो शजर, चल दिए हमने पुकारा बहुत, तुमने आने में देर की हम तो ठहरे फकीर, दूसरे घर चल दिए दस्तक देना दिलों पर, आदत है अपनी जिसने दी पनाह, हम तो उधर चल दिए रुखसत हुए हम, बहुत दूर निकल चुके अब मत आवाज़ देना, किधर चल दिए सुहानी फिज़ा तो हमारे साथ ठहरती है जो चले, तो साथ हमारे हर मंज़र चल दिए अब क्या उम्मीद करना हमारे लौटने की यार,अब हम बस चल दिए तो चल दिए - विवेक विश्वकर्मा #syahi2020 #poetrystudio