अश्क है ग़र चक्षु में फिर बहते क्यों नहीं हम से प्यार करते हो, फिर कहते क्यूँ नहीं कर देती हैं फाख़्ता खुद को न्योछावर अपने अंडों पर पंख निकलने पर मनचले घोसले में रहते क्यूं नहीं सिर्फ इश्क कर लेना नुमाइश नहीं है मोहब्बत में सच्चे आशिक बनते हो फिर फुरकत सहते क्यूं नहीं एक मतला और दो शेर आपकी सेवा में प्रस्तुत है :- अश्क है गर चक्षु में फिर बहते क्यूं नही हमसे इश्क करते हो फिर कहते क्यूं नहीं खुद को न्योछावर करती देखी है अपने अंडों की खातिर पंख निकलने पे मनचले घोसले में रहते क्यूं नहीं