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आँखों में भरकर ख़्वाब बिना नींद के ही सोते गए, तरक़्

आँखों में भरकर ख़्वाब बिना नींद के ही सोते गए,
तरक़्क़ी की चाह में दिलों पर तन्हाईयाँ बोते गए।

दिल की दीवारों पर ज़ख्मों के निशान बहुत से है,
हमें  गुस्सा बहुत आता था  सारे रिश्तें  खोते गए।

एक वक़्त था वज़न बातों का सहा नही जाता था,
एक वक़्त है आज़,बोझ उम्र का कंधों पर ढ़ोते गए।

दर्द अपमान नाकामियों का बांध बस टूटने को था,
शुक्र है सावन का  मैं और बादल साथ में रोते गए।

मालूम था हमें  शोहरत ज़मीदोज़ होगी इक दिन,
कितने 'अंजान' थे लहू से लहू के निशां धोते गए। ♥️ Challenge-688 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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आँखों में भरकर ख़्वाब बिना नींद के ही सोते गए,
तरक़्क़ी की चाह में दिलों पर तन्हाईयाँ बोते गए।

दिल की दीवारों पर ज़ख्मों के निशान बहुत से है,
हमें  गुस्सा बहुत आता था  सारे रिश्तें  खोते गए।

एक वक़्त था वज़न बातों का सहा नही जाता था,
एक वक़्त है आज़,बोझ उम्र का कंधों पर ढ़ोते गए।

दर्द अपमान नाकामियों का बांध बस टूटने को था,
शुक्र है सावन का  मैं और बादल साथ में रोते गए।

मालूम था हमें  शोहरत ज़मीदोज़ होगी इक दिन,
कितने 'अंजान' थे लहू से लहू के निशां धोते गए। ♥️ Challenge-688 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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