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// रूठी हुई ज़िंदगी // अभी रूठी हुई ज़िंदगी है तो

// रूठी हुई ज़िंदगी //

अभी रूठी हुई ज़िंदगी है तो क्या हुआ 
मना लेंगे दिखाकर इसको अपनी अदा।

कल तक तो मौसम इसका था सुहाना 
किस बात पर कब, क्यों हो गई ख़फ़ा।

नखरें क्या कहना, हर पल रंग बदलती
ठहरती नहीं रोज़ ही, बदल लेती पता।

ज़िंदगी  उसे ही रास आती है जहां में
जो ग़म छुपा ख़ुशियों का करता नशा।

सतरंगी मौसम लिए सदा ही घूमती है
ग़म बाद ही तो ख़ुशी का आता मज़ा।

रोज़ ही तक़दीर बदलने का देती मौक़ा
डूबा रहा जो अश्कों के सागर में फॅंसा।

राज़-ए-ज़िंदगी बयाॅं करती है 'अर्चना'
ख़ुशियाॅं बाॅंटो तो ख़ुशियाॅं करती अता।

©Archana Verma Singh
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