दुनिया तेरी दुनियादारी से ऊबने लगा हूं मैं वो मुझे चाँद कहती थी उसी में डूबने लगा हूं मैं भटकते रहे जिसकी तलाश में शहर-दर-शहर हर आईने में उसका अक्स ढूंड़ने लगा हूं मैं हर जख्म को दवा मिले ये मुमकिन कहाँ नये दर्द से पुराने दर्द को बदलने लगा हूं मैं जो बादल न बरसे तो धरती की क्या ख़ता आजकल खुद से ही रूठने लगा हूं मैं... © abhishek trehan #newday #lshq #shyari #Love #Pain #poetry #Khyal