जल रही धरती को अब कुछ बूंदों की आश है, समंदर है उसी का फिर न जाने क्या प्यास है। यूं ही बदलती रही दुनिया तो फिर कौन खास है, छोड़कर अपनो को फिर गैरो से अपनों की आस है। #बदलती दुनिया