ये मायूसियां पाती ठिकाना कहाँ जो झूठी आस के नकाब न होते इन आंसुओं को मिलती पनाह कहां जो मुस्कुराहटों के नकाब न होते दर्द सारे बेपर्दा होते जो बेपरवाहियों के नकाब न होते दुनिया की असलियत कुछ और बदरंग होती जो ये अच्छाई के रंगीन नकाब न होते दफ्न होते किस तरह राज सारे जो ये खामोशियों के नकाब न होते हर चेहरा आइना होता हर वक्त सच से सामना होता सच के नश्तर से मिले ज़ख्म नासूर होते जो ये अच्छाइयों के नकाब न होते ये कड़वाहटें कैसे गले उतरतीं जो ये मिठास के नकाब न होते हकीकतें जीना मुहाल कर देती जो ये गलतफहमियों के नकाब न होते ©Rakhee ki kalam se ये मायूसियां पाती ठिकाना कहाँ जो झूठी आस के नकाब न होते इन आंसुओं को मिलती पनाह कहां जो मुस्कुराहटों के नकाब न होते दर्द सारे बेपर्दा होते जो बेपरवाहियों के नकाब न होते