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तीन कुण्डलिया छंद (1) सूर्यदेव का बन्धुवर,दिवस आज

तीन कुण्डलिया छंद
(1)
सूर्यदेव का बन्धुवर,दिवस आज रविवार।
सकल जगत् में बाँटते,जो अपना उजियार।।
जो अपना उजियार,बाँटते बिना भेद के।
मन में अपने भाव,न रखते कभी खेद के।।
कह सतीश कविराय,साथ पाते त्रिदेव का।
दिवस आज रविवार,बन्धुवर सूर्यदेव का।।
(2)
जीना कविता को सरस,सहज नहीं है मीत।
करनी पड़ती है हमें,कष्टों से भी प्रीत।।
कष्टों से भी प्रीत,जीत तब ही मिल पाती।
तभी निकल ख़ुद यार,हृदय से कविता गाती।।
कह सतीश कविराय,होय ख़ुद छलनी सीना। 
सहने पड़ते कष्ट,तभी आ पाये जीना।।
(3)
अहंकार की घोषणा,करना नहीं सतीश।
तुझमें कुछ तेरा नहीं,कहे हृदय का ईश।।
कहे हृदय का ईश,शारदे मातु साथ में।
लिखवाती सायास,थमाकर क़लम हाथ में।।
कह सतीश कविराय,निभा तू रीत प्यार की।
करना नहीं सतीश,घोषणा अहंकार की।।
*सतीश तिवारी 'सरस',नरसिंहपुर (म.प्र)

©सतीश तिवारी 'सरस' #कुण्डलिया_छंद 

#Walk
तीन कुण्डलिया छंद
(1)
सूर्यदेव का बन्धुवर,दिवस आज रविवार।
सकल जगत् में बाँटते,जो अपना उजियार।।
जो अपना उजियार,बाँटते बिना भेद के।
मन में अपने भाव,न रखते कभी खेद के।।
कह सतीश कविराय,साथ पाते त्रिदेव का।
दिवस आज रविवार,बन्धुवर सूर्यदेव का।।
(2)
जीना कविता को सरस,सहज नहीं है मीत।
करनी पड़ती है हमें,कष्टों से भी प्रीत।।
कष्टों से भी प्रीत,जीत तब ही मिल पाती।
तभी निकल ख़ुद यार,हृदय से कविता गाती।।
कह सतीश कविराय,होय ख़ुद छलनी सीना। 
सहने पड़ते कष्ट,तभी आ पाये जीना।।
(3)
अहंकार की घोषणा,करना नहीं सतीश।
तुझमें कुछ तेरा नहीं,कहे हृदय का ईश।।
कहे हृदय का ईश,शारदे मातु साथ में।
लिखवाती सायास,थमाकर क़लम हाथ में।।
कह सतीश कविराय,निभा तू रीत प्यार की।
करना नहीं सतीश,घोषणा अहंकार की।।
*सतीश तिवारी 'सरस',नरसिंहपुर (म.प्र)

©सतीश तिवारी 'सरस' #कुण्डलिया_छंद 

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