पराए लोगों की भीड़ में एक वो ही था जिसने मुझे अपना बनके दिखाया। ये शहर तब तक मेरा नहीं था।जब तक की किस्मत ने मुझे उससे नही मिलाया। दिन महीने साल और मौसम कब बीते एक पल में ये समझ ही नही आया। जो तुम्हारा है,वो हर हाल मे तुम्हारा ही रहेगा,ये भी उसी ने मुझे समझाया। यूं तो ख़ुद को नादान और नासमझ कहता, पर असल में जिंदगी जीना उसने ही सिखाया। हैरान हूं देख कर,कैसे ये इल्तिज़ा पूरी हुई, उससे मिली तो खुशियों का एक नया चेहरा नज़र आया। He was the only one in the crowd of strangers Who showed me as his own. This city was not mine till then. That fate did not match me with him. I didn't understand how days, months, years and seasons passed away in a moment.