अगर मन सटीक और दृढ़ और स्थिर हो तब साथ की आवश्यकता का प्रश्न ही कहां रहता है, ये क्षणिक आवेश बार बार की लिखना हर क्षण आवश्यक ही है ये न तो विधाता को स्वीकार है और न ही मनुष्य को । जरूरी ये नहीं की हर भाव केवल लेखन का माध्यम बना रहे । ज़रूरी ये है की भाव कुछ ऐसा हमेशा व्यक्त रहें की लिखना औपचारिक रूप से ज़रूरी न बने क्योंकि एक मूर्ख व्यक्ति भी उतना ही प्रभावशाली है अगर उसके पास न ज्ञान हो और n विद्या फिर भी वो जानता है की आराधना ईश्वर की मन से होती है तथा उसके लिए हर बार मंदिर की सीढियां चढ़ कर फिर भगवान की मूर्ति को मानकर फिर आस्था और विश्वास रखकर पूजा करे और कुछ अपने लिए मांगे या फिर सर्व कल्याण की कामना करे। तेरा साथ पाकर... #तेरासाथ #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi