गुज़र गया वो ज़माना, जो मेरा और सिर्फ मेरा अपना था! मैं अपने ख़्वाबों की दुनिया, वो मीठे पल कहाँ तलाश करूँ! जहाँ कभी मेरी हँसी गूंजा करती थी,चारों ओर हवाओं में शब्दों में तौलकर उन अनछुए, यादों को कैसे आबाद करूँ! अंतर्मन में गूँज रहे वो बचपन से जबानी के सुहाने पल, आँगन में नीम और बरगद पर पंछियों के चहचहाट हरपल! आँगन के मिट्ठी की खुशबू, माँ की डांट और पापा का प्यार यादें आँगन की जो रूह में मेरे है बसी, उसे कैसे ख़ुद से आज़ाद करूँ!! ©rishika khushi यादें आँगन की