कहने को तो मैं हूँ आज़ाद पंछी पर हाथ अभी भी है बंधे महलों की मैं रानी हूँ पर पिंजरे में है पंख पड़े मिल जाती है सब सुविधा पर दुविधा में रह जाती हूँ नहीं कर सकती अपने मन की क्योंकि बेटी मैं कहलाती हूँ बड़ा अजीब रिश्ता है ये ना जाने कैसा दिखावा है अपनापन होकर भी मैंने सिर्फ़ परायापन हीं पाया है जज्बात बहुत से इस दिल में पर होंठों पर चुप्पी छाई है बगावत करती जब ये नज़रें लिखने में बैठ जाती हूँ नहीं कर सकती अपने मन की क्योंकि बेटी मैं कहलाती हूँ बचपन से इक बात ही हमको सिखाई जाती है मान लेना तुम सारी बातें चाहे खुशी है या रुसवाई है अब तो आदत है घुटने की सहम सी में जाती हूँ नहीं कर सकती अपने मन की कयोंकि बेटी मैं कहलाती हूँ बगावत की इस आग को सहन नहीं कर पाओगे जो ना हो ये बेटी तो चिराग कहाँ से लाओगे नहीं डरती मैं भी किसी से बस सम्मान करना चाहती हूँ नहीं कर सकती अपने मन की क्योंकि बेटी मैं कहलाती हूँ ©kanak lakhesar ... #kanaklakhesar #Nojoto #poem #girlsrespect