हम भाईचारे को भूल रहे सब कट्टरता में फल- फूल रहे इंसान अगर थे तो इन्सान रहो क्यूं मजहब में सब झूल रहे सब भाईचारे का ध्यान रखो कद्र करो तुम सब जन की दीवार गिरा दो मजहब की दीवारें नफ़रत की तोड़ दो तुम वैमनस्यता को अब छोड़ दो तुम जो धर्म की आग लगाई गई उसका रुख़ अब मोड़ दो तुम नफ़रत का बीज जो बो रहे काट दो जड़ें उन सबकी दीवार गिरा दो मजहब की कोई न पराया सब अपने हैं चाहे लोग यहां पर जितने हैं धर्म का धंधा करने वाले ही सब लोग यहां पर बिकने हैं जो आग यहां फ़ैला रहे हैं कलई खोलो उनके करतब की दीवार गिरा दो मजहब की। रवि एस सिंह "चंचल" #मजहब