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मेरी प्रेरणा, एक चार लाइन का काग़ज़ का टुकड़ा आदरण

मेरी प्रेरणा,
एक चार लाइन का काग़ज़ का टुकड़ा
आदरणीय भैया,
सामने से देने का साहस मुझमें नहीं है 
जो दो ढाई बरसों में आपने मुझे दिया है
उसमें से कण मात्र आपके पास रख रही हूं
अपनी बहन का दिल रख लेना...
आपकी नीती मेरा जीवन अक्सर लोगों से भरा रहता है,मगर मुझे सब समझते हों ऐसा मैं नहीं मानता,मुझे समझना जितना सरल है उतना जटिल भी है।
असल में सरलता, सादगी और सत्य पर विश्वास करना इतना सहज नहीं होता।
खैर ये बात 1997 से 2000 तक की है। श्री मती जो कैंसर था वो भी  फूड पाइप में जो घातक होता है, ऐसे समय में उन दिनों आस पास कोई था नहीं जो।मेरे मन में चलते द्वंद्व में मेरे साथ होता, और ये शिकायत मैंने भगवान।से भी कर डाली, जाने क्यूं मन खिन्न अन्माना सा रहता, dr. गुप्ता ने सर्जरी की बाद मेरे दिल में एक बात डाल दी थी की she has maximum two years of life क्या यही मेरे द्वंद्व का कारण है? और इस तनाव को मैंने अपने तक सीमित रख लिया था...लोग आते बात करते सहानुभूति जताते और नकारत्मक विचार छोड़ जाते...
तभी एक सुखद सा हवा का झोंका आया... नीती के नाम का... ये नीति का मिलना भी एक आश्चर्य से कम नहीं हाथरस से आई नीति शर्मा मेरे रक्तदान से प्रभावित हुई युवती ... मुझ तक दिल्ली आ पहुंची... नीती की 4 बहने और है
15सितंबर 1997 को हमारी आमने सामने मुलाकात होती है और ये सिलसिला 15 दिन के अंतराल पे चलता है 22 नवंबर 1997 को नीति के जन्मदिन पर मेरे मन से एक पत्र लिखा जाती है और मैं उन बहनों के भाई होने का दायित्व निभाने का वचन देता हूं, 29 नवंबर को मेरे जन्मदिन पर नीति को घर आने का निमंत्रण दे परिवार से उसका परिचय कराता हूं...
हम दोनो कब कैसे एक दूसरे के इतने अपने हो गए कि पता ही नही चला
दिसंबर 1999 तक का समय okay okay निकलता है श्री मती जी का लेकिन दिसंबर अंत तक उनका स्वस्थ्य गिरना शुरू होता है....
यहां पर बात ये समझने की है कि मेरे बिना कुछ कहे नीति अपनी और दो बहनों के साथ एक ऐसी व्यवस्था कायम करती है की इन तीनों में से कोई तो एक प्रतिदिन श्री मती जी के साथ रहता है....और हमारे सारे प्रयत्न प्रयास 2 जून 2000 को थक कर टूट जाते हैं श्रीमती जी हमेशा को अलविदा कह कर चली जाती हैं
मेरी प्रेरणा,
एक चार लाइन का काग़ज़ का टुकड़ा
आदरणीय भैया,
सामने से देने का साहस मुझमें नहीं है 
जो दो ढाई बरसों में आपने मुझे दिया है
उसमें से कण मात्र आपके पास रख रही हूं
अपनी बहन का दिल रख लेना...
आपकी नीती मेरा जीवन अक्सर लोगों से भरा रहता है,मगर मुझे सब समझते हों ऐसा मैं नहीं मानता,मुझे समझना जितना सरल है उतना जटिल भी है।
असल में सरलता, सादगी और सत्य पर विश्वास करना इतना सहज नहीं होता।
खैर ये बात 1997 से 2000 तक की है। श्री मती जो कैंसर था वो भी  फूड पाइप में जो घातक होता है, ऐसे समय में उन दिनों आस पास कोई था नहीं जो।मेरे मन में चलते द्वंद्व में मेरे साथ होता, और ये शिकायत मैंने भगवान।से भी कर डाली, जाने क्यूं मन खिन्न अन्माना सा रहता, dr. गुप्ता ने सर्जरी की बाद मेरे दिल में एक बात डाल दी थी की she has maximum two years of life क्या यही मेरे द्वंद्व का कारण है? और इस तनाव को मैंने अपने तक सीमित रख लिया था...लोग आते बात करते सहानुभूति जताते और नकारत्मक विचार छोड़ जाते...
तभी एक सुखद सा हवा का झोंका आया... नीती के नाम का... ये नीति का मिलना भी एक आश्चर्य से कम नहीं हाथरस से आई नीति शर्मा मेरे रक्तदान से प्रभावित हुई युवती ... मुझ तक दिल्ली आ पहुंची... नीती की 4 बहने और है
15सितंबर 1997 को हमारी आमने सामने मुलाकात होती है और ये सिलसिला 15 दिन के अंतराल पे चलता है 22 नवंबर 1997 को नीति के जन्मदिन पर मेरे मन से एक पत्र लिखा जाती है और मैं उन बहनों के भाई होने का दायित्व निभाने का वचन देता हूं, 29 नवंबर को मेरे जन्मदिन पर नीति को घर आने का निमंत्रण दे परिवार से उसका परिचय कराता हूं...
हम दोनो कब कैसे एक दूसरे के इतने अपने हो गए कि पता ही नही चला
दिसंबर 1999 तक का समय okay okay निकलता है श्री मती जी का लेकिन दिसंबर अंत तक उनका स्वस्थ्य गिरना शुरू होता है....
यहां पर बात ये समझने की है कि मेरे बिना कुछ कहे नीति अपनी और दो बहनों के साथ एक ऐसी व्यवस्था कायम करती है की इन तीनों में से कोई तो एक प्रतिदिन श्री मती जी के साथ रहता है....और हमारे सारे प्रयत्न प्रयास 2 जून 2000 को थक कर टूट जाते हैं श्रीमती जी हमेशा को अलविदा कह कर चली जाती हैं

मेरा जीवन अक्सर लोगों से भरा रहता है,मगर मुझे सब समझते हों ऐसा मैं नहीं मानता,मुझे समझना जितना सरल है उतना जटिल भी है। असल में सरलता, सादगी और सत्य पर विश्वास करना इतना सहज नहीं होता। खैर ये बात 1997 से 2000 तक की है। श्री मती जो कैंसर था वो भी फूड पाइप में जो घातक होता है, ऐसे समय में उन दिनों आस पास कोई था नहीं जो।मेरे मन में चलते द्वंद्व में मेरे साथ होता, और ये शिकायत मैंने भगवान।से भी कर डाली, जाने क्यूं मन खिन्न अन्माना सा रहता, dr. गुप्ता ने सर्जरी की बाद मेरे दिल में एक बात डाल दी थी की she has maximum two years of life क्या यही मेरे द्वंद्व का कारण है? और इस तनाव को मैंने अपने तक सीमित रख लिया था...लोग आते बात करते सहानुभूति जताते और नकारत्मक विचार छोड़ जाते... तभी एक सुखद सा हवा का झोंका आया... नीती के नाम का... ये नीति का मिलना भी एक आश्चर्य से कम नहीं हाथरस से आई नीति शर्मा मेरे रक्तदान से प्रभावित हुई युवती ... मुझ तक दिल्ली आ पहुंची... नीती की 4 बहने और है 15सितंबर 1997 को हमारी आमने सामने मुलाकात होती है और ये सिलसिला 15 दिन के अंतराल पे चलता है 22 नवंबर 1997 को नीति के जन्मदिन पर मेरे मन से एक पत्र लिखा जाती है और मैं उन बहनों के भाई होने का दायित्व निभाने का वचन देता हूं, 29 नवंबर को मेरे जन्मदिन पर नीति को घर आने का निमंत्रण दे परिवार से उसका परिचय कराता हूं... हम दोनो कब कैसे एक दूसरे के इतने अपने हो गए कि पता ही नही चला दिसंबर 1999 तक का समय okay okay निकलता है श्री मती जी का लेकिन दिसंबर अंत तक उनका स्वस्थ्य गिरना शुरू होता है.... यहां पर बात ये समझने की है कि मेरे बिना कुछ कहे नीति अपनी और दो बहनों के साथ एक ऐसी व्यवस्था कायम करती है की इन तीनों में से कोई तो एक प्रतिदिन श्री मती जी के साथ रहता है....और हमारे सारे प्रयत्न प्रयास 2 जून 2000 को थक कर टूट जाते हैं श्रीमती जी हमेशा को अलविदा कह कर चली जाती हैं