बचपन और लंच ब्रेक बचपन के खेल निराले थे संग कई खेलने वाले थे लड़ना झगड़ना रोना धोना रोज खेल में चोटिल होना हर दिन की यही कहानी थी एक नई शिकायत घर आनी थी मिल जाता था दंड कभी कभी बचाने वाली दादी या नानी थी यादें सारी बचपन की आती हैं देख खेलते बच्चों को, आंखे भर आती हैं