ना जाने कब ज़िन्दगी मेरी खो गयी, ना जाने कब अपराधी मैं हो गयी, कसूर क्या था हुई कहाँ थी गुस्ताख़ी, जो बन्जर सी मेरी ज़िन्दगी हो गयी । ना रंग बचे ना कोई सिंगार , लाल जोड़े में थी मैं, अगले पल कोरे कागज सी सफेद हो गयी, हाँ मैं विधवा हो गयी । थामा था जिसने हाथ, उसकी इस दुनियां से रूकस्ती हो गयी, फिर क्यों मैं उस बिन इस जहां में रह गयी, क्यों मैं उसके साथ ही नहीं सो गयी । कल तक तो मैं शुभ थी, फिर अचानक अपशगुनी कैसे हो गयी, आज क्यों सभी को, मेरी परछाई से भी नफरत हो गयी । समाज के लिए अब बस मैं, कोने में पड़ी रहने वाली वस्तु हो गयी, हाँ मेरी कहानी अब इतनी सी हो गयी, मैं विधवा हो गयी ।। insta id | @chand_ki_kalam (chandani pathak) #विधवा #SAD