तरस तरस के तनहा तनहा क्यों गुजार दें बारिश का समां यह तो कुदरत की इनायत है, हम पर क्यों ना हम भी दामन भर लें मजबूरियों के घूंट पी रहे हैं, कब से सूखे सूखे से जी रहे हैं बढ़ती जा रही है दिल की जलन, सूखती मोहब्बत को नम कर लें.. तरस तरस के तन्हा तन्हा, क्यों गुजार दें बारिश का समां.. kyon guzarden waarishon ka saman..