सब शांत है निःशब्द सन्नाटा हवाओं का भी शोर नहीं सांसो की भी सरगोशी नहीं सोंचने की आवाज नहीं देह से निकल कर रूह मेरी कब कहां गई मालूम नहीं कैसे हो का जवाब था कभी के जिंदा हूं, अब जिंदगी नहीं दर्द का एहसास नहीं, दर्द नहीं सब शांत है मगर ये मरघट नहीं झुलसी ज़मी पर दूब का तिनका सा जेठ की धूप मे सूरज से लड़ता सा ओस की प्यास है मगर ओस नहीं भूख नहीं प्यास नहीं प्यास की भी आस नहीं देखने सुनने कहने की कोई चाह नहीं ये क्या है क्यूँ है कैसे हुआ क्या पता पता लगे ना लगे जवाब मुझे दरकार नहीं महज कुछ दिनों की बात है शायद फिर सब वैसा ही होगा जैसा था फिर वही हंसी खुशी होगी फिर होंगी महफिलें भी ठहाके भी अच्छा लगे शायद या और बेहतर भी या ना भी हो, यूँ ही रहे परवाह नहीं मैं जय हूं अजेय भी विजय भी होगी रेगिस्तानी फूल सा, तूफान मे दिए सा घनघोर अंधेरे मे जुगनू की तरह अपने goliath से भिड़े नन्हें डेविड सा नहीँ नहीं नहीं नहीं नहीं की रट से उभर के आऊंगा मैं जीकर दिखाऊंगा था कभी ऐसा,उल्लास की बुलंदियां पर अब गैर सा लगता हूँ खुद को बेज़ान सा मज़लूम सा मुझमे अब वो जय नहीं उसमे जरा भी मैं नहीं सब शांत है निःशब्द सन्नाटा हवाओं का भी शोर नहीं सांसो की भी सरगोशी नहीं सोंचने की आवाज नहीं देह से निकल कर रूह मेरी कब कहां गई मालूम नहीं कैसे हो का जवाब था कभी