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" स्याह रातों में छिपकर बैठना न गवारा था मुझे ,

   " स्याह रातों में छिपकर बैठना न गवारा था मुझे ,                         एक रोशनी जो दिखी -    मंजिल की ओर चल पड़े ! "                                                                                                            # light of hope #
   " स्याह रातों में छिपकर बैठना न गवारा था मुझे ,                         एक रोशनी जो दिखी -    मंजिल की ओर चल पड़े ! "                                                                                                            # light of hope #