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मन चंचल है। इन्द्रियों का राजा है। हर इन्द्रिय के

मन चंचल है।
इन्द्रियों का राजा है।
हर इन्द्रिय के अपने विषय होते हैं।
भौतिक सुखों के लिए अर्थ प्रधान
जीवन ने मनुष्य को धन से ही छोटा कर दिया।
व्यक्ति शरीर जीवी बन गया।
जैविक सन्तान बन गया।
केवल मानव देह पा लेना काफी नहीं।
भीतर भी मानव का होना जीवन की अनिवार्यता है।
शान्ति उसी मानव की जरूरत है।
उसके अभाव में सभी शरीर
पशु-भाव का आश्रय बनने लग गए।
वे ही जाते हैं शान्ति सम्मेलनों में।
उनकी आवश्यकता होती ही नहीं है।
तब शान्ति किसके लिए आएगी? :😊💕🍨👨 Good evening ji ☕☕☕💕🍨👨🍉🍫🍎🍀🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱
:
शान्ति के प्रयासों में रूपान्तरण करने की आवश्यकता होती है। शरीर और बुद्धि मात्र से यह कार्य नहीं किया जा सकता। मन के धरातल पर होने वाले इस कार्य में भावना एवं दृढ़ संकल्प पहली आवश्यकता है। प्रतिभागियों में बुद्धि का अहंकार इतना अघिक होता है कि वे या तो दूसरे की बात पर चिन्तन ही नहीं करना चाहते या अपनी ही बात पर अडे रहना चाहते हैं। कुछ वक्ता अपने पवित्र शास्त्रों के उद्धरणों को ही विश्व शांति का संदेश मानकर प्रस्तुत करते हैं।
:😊क्रमशः ------😊💐☺
समयाभाव और
मन चंचल है।
इन्द्रियों का राजा है।
हर इन्द्रिय के अपने विषय होते हैं।
भौतिक सुखों के लिए अर्थ प्रधान
जीवन ने मनुष्य को धन से ही छोटा कर दिया।
व्यक्ति शरीर जीवी बन गया।
जैविक सन्तान बन गया।
केवल मानव देह पा लेना काफी नहीं।
भीतर भी मानव का होना जीवन की अनिवार्यता है।
शान्ति उसी मानव की जरूरत है।
उसके अभाव में सभी शरीर
पशु-भाव का आश्रय बनने लग गए।
वे ही जाते हैं शान्ति सम्मेलनों में।
उनकी आवश्यकता होती ही नहीं है।
तब शान्ति किसके लिए आएगी? :😊💕🍨👨 Good evening ji ☕☕☕💕🍨👨🍉🍫🍎🍀🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱
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शान्ति के प्रयासों में रूपान्तरण करने की आवश्यकता होती है। शरीर और बुद्धि मात्र से यह कार्य नहीं किया जा सकता। मन के धरातल पर होने वाले इस कार्य में भावना एवं दृढ़ संकल्प पहली आवश्यकता है। प्रतिभागियों में बुद्धि का अहंकार इतना अघिक होता है कि वे या तो दूसरे की बात पर चिन्तन ही नहीं करना चाहते या अपनी ही बात पर अडे रहना चाहते हैं। कुछ वक्ता अपने पवित्र शास्त्रों के उद्धरणों को ही विश्व शांति का संदेश मानकर प्रस्तुत करते हैं।
:😊क्रमशः ------😊💐☺
समयाभाव और

:😊💕🍨👨 Good evening ji ☕☕☕💕🍨👨🍉🍫🍎🍀🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱 : शान्ति के प्रयासों में रूपान्तरण करने की आवश्यकता होती है। शरीर और बुद्धि मात्र से यह कार्य नहीं किया जा सकता। मन के धरातल पर होने वाले इस कार्य में भावना एवं दृढ़ संकल्प पहली आवश्यकता है। प्रतिभागियों में बुद्धि का अहंकार इतना अघिक होता है कि वे या तो दूसरे की बात पर चिन्तन ही नहीं करना चाहते या अपनी ही बात पर अडे रहना चाहते हैं। कुछ वक्ता अपने पवित्र शास्त्रों के उद्धरणों को ही विश्व शांति का संदेश मानकर प्रस्तुत करते हैं। :😊क्रमशः ------😊💐☺ समयाभाव और