में कभी जब औरत की मरम्मत देखता हूं तो मुझे ऐसा लगता है शायद सामने वाला इंसान उस से छुटकारा पाना चाहता है बहुत से अपना जाती सुकून पाने के लिये अकसर यह कदम उठा लेते हैं और कुछ दिनों बाद अपनी हरकत पे शर्मिंदा भी होते हैं वो यह भूल जाते हैं की बहुत देर हो चुकी है मुझे औरत जात से जादा पवित्र कोई और नहीं दिखता मुझे औरत की आगोश के सेवा किसी और आगोश मे सुकून नही मिलता लेकिन फिर भी न जाने मुझे क्यू शिकायत रहती है ऐसे पवित्र दामन में 9महीने रहता हूं और जो इतनी तकलीफ के बाद मुझे उस खून के लोथडे से निकाल के साफ करती है मेरी सांस तो बस उसी की दी हुई भीख है शायद हां मुझे शिकायत है और शायद हमेशा रहेगी भी उन औरतों से जो अपनी चाह के खातिर अपनी बडास निकाल कर दोगले पन का ऐसा सबूत देती आइ हैं जो उन्हीं के गाल पे थप्पड़ मारने के बराबर होगा Ashab Khan.. मरम्मत