अब अल्फ़ाज़ भी कम पड़ जाते है तेरी यादों को समेटते समेटते अब जज्बात भी उमड़ते नही तेरी दी निशानियों को देखते देखते क्या लिखूं आखिर समझ नही आता और फिर लिखे बिना भी रहा नही जाता.... इसलिए लगा रहता हूँ इस उड़ेधबुन में, कि किसी दिन कुछ ऐसा लिखूंगा जो मेरे मन को भाएगा। इंतेज़ार है बड़े अरसे से पता नही वो दिन कब आएगा। पता है मुझे तू सोच रही होगी- अब जो लिखता हूँ उसमे क्या कमी है?? लगती तो उसमे भी एक आशिक़ की सरजमी है। सच कहूँ तो जब खुद को पढ़ता हूँ तो हंस पड़ता हूँ। लगता है मैं अपनी ही शब्दों और जज्बातो से लड़ता हूँ। चल छोड़ अब फिर किसी दिन इसी बात पर कुछ लिखूंगा। और फिर तेरी मेरी उस अंतिम मुलाकात पर कुछ लिखूंगा। 'काफ़िर' हूँ मेरा तो काम ही है भटकना दरबदर, आज ईद है तो ईद की चांदनी रात पर कुछ लिखूंगा। इंतेज़ार #इंतेज़ार #लेखक #कविता #nojoto #nojotopoetry