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तुझको सोचूं तो तिरे जिस्म की ख़ुशबू आए मेरी ग़ज़लो

तुझको सोचूं तो तिरे जिस्म की ख़ुशबू आए
मेरी ग़ज़लों में मोहब्बत की तरह तू आए

क़र्ज़ मुझपे बहोत रात की तनहाई का
मेरे कमरे में कोई चांद न जुगनू आए

अबके मौसम में ये दीवार भी गिर जाए 
इस तरह जिस्म की बुनियाद में आंसू आए

©Abdul Rahman
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