मैं चलना भूल गई हूँ अक्सर कदम ठिठक जाते हैं, बेडियों में जकड़ा गया है मेरे क़दमों को। उड़ने से रोक गया है मेरे पंखों को, फिर कोई बताए मुझे चलने और उड़ने के सिवाय क्या काम है इनका? अब मेरी आँखें सपने नहीं देखा करती, अक्सर कानों को बंद कर देती हूँ मैं। बंदिशें लगाई जाती है मेरी सोच पर, तो फिर कोई मुझे बताए मन क्यों है? सवाल पूछने का अधिकार नहीं है मुझको, अक्सर अपना मुँह बंद कर देती हूँ मैं। विद्रोह के लिए उठते हाथ मेरे, हमेशा बाँध दिए जाते हैं; क्या बाँधने के लिए ही इन्हें खोला जाता? स्वप्न, जिज्ञासा और अभिलाषाएँ किसी कोने में पड़े हुए , मेरी ओर आशा से करते हैं कुछ सवाल। मेरा केवल एक ही जवाब होता है हाँ,चलना भूल गई हूँ मैं। Thanx for not remembering me 🙃 #अनाम_ख़्याल #रात्रिख़्याल #anumika