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इक़ रोज बैठेंगे हम एक साथ, उन लहरों के सामने! गहरा

इक़ रोज बैठेंगे हम एक साथ,
उन लहरों के सामने!
गहराइयों को उनकी साथ मिलकर नापेंगे,
ढलती शाम के साथ में तेरा हाथ थाम लूंगा,
ये इशारा होगा तेरा हर वक्त में साथ निभाने का!
ठिठुरने पर तुझे अपनी जैकेट पहना दूंगा,
तेरी मुस्कुराहट को अपनी आंखों में कैद कर लूंगा,
बीते साल जो भी गुज़ारे तन्हाइयों के साथ,
बस तू आज साथ है,
इस एहसास के साथ, पूरा जीवन गुजार लूंगा!
शायद तू कुछ पलों में चली जाएगी,
फिर शायद कभी ना लौट कर आएगी,
पर कभी मुड़कर देखें,
मैं तुझे वही मिलुंगा, जहां आख़री दफा हाथ थामा था,
इक़ रोज, एक साथ बैठकर
तू मेरी शामें मुकम्मल कर देना।

©Medha Bhardwaj
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