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मैं बूँदो मे बटा सोचता, मैं भी हूँ हिस्सा सागर का

मैं बूँदो मे बटा सोचता,
मैं भी हूँ हिस्सा सागर का
छोटा सा ही हूँ चाहे पर,
मैं ही हूँ हर हिस्सा सागर का
मोती भी बनता मैं ही, और मैं ही हूँ पाला जाड़े का,
पर फिर भी क्यू अस्तित्व नही हैं मेरा, अलग थलग हूँ तो छण दो छण का जीवन मेरा,
क्योकि मैं हर हिस्सा सागर का, क्योकि मैं हर हिस्सा सागर का............
मैं बूँदो मे बटा सोचता,
मैं भी हूँ हिस्सा सागर का
छोटा सा ही हूँ चाहे पर,
मैं ही हूँ हर हिस्सा सागर का
मोती भी बनता मैं ही, और मैं ही हूँ पाला जाड़े का,
पर फिर भी क्यू अस्तित्व नही हैं मेरा, अलग थलग हूँ तो छण दो छण का जीवन मेरा,
क्योकि मैं हर हिस्सा सागर का, क्योकि मैं हर हिस्सा सागर का............