दिल लगता नहीं, दिल लगाना पढ़ रहा हैं वक़्त जैसे-जैसे अब आगे बढ़ रहा हैं इसे मजबूरी कहे या जबरदस्ती की रीत मेरा डर जो अंदर ही अंदर अब मेरे हौसले से लड़ रहा हैं ✍अविनाश दुबे ©_avialfaaz_mr_ad_ दिल लगता नहीं, दिल लगाना पढ़ रहा हैं वक़्त जैसे-जैसे अब आगे बढ़ रहा हैं इसे मजबूरी कहे या जबरदस्ती की रीत मेरा डर जो अंदर ही अंदर अब मेरे हौसले से लड़ रहा हैं ✍अविनाश दुबे