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स्त्री और पुरुष की सच्ची मित्रता पर नहीं होती कोई

स्त्री और पुरुष की सच्ची मित्रता पर
नहीं होती कोई संदेह की गुंजाइश
न होती किसी प्रमाण की जरुरत
हमें बदलने की आवश्यक्ता है अपनी सोच
क्योंकि तमाम रिश्तों को निभाती स्त्री
क्यों नहीं निभा सकती यह रिश्ता
जब प्यार पिता से किया तो कहलायी अच्छी बेटी
प्यार भाई से किया तो बनी हमराज बहन
किया पति से प्यार, तो बन गयी पतिव्रता
बेटों से करके प्यार बनी ममतामयी मूर्ति
आखिर कैसे एक संबंध पर मिलता लांछन
बढ़ाया मित्रता का हाथ तो उठा चरित्र पर सवाल
समाज ! तुमने कभी खोल कर देखा है अंतर्मन का जाल

 #स्त्रीपुरुष
स्त्री और पुरुष की सच्ची मित्रता पर
नहीं होती कोई संदेह की गुंजाइश
न होती किसी प्रमाण की जरुरत
हमें बदलने की आवश्यक्ता है अपनी सोच
क्योंकि तमाम रिश्तों को निभाती स्त्री
क्यों नहीं निभा सकती यह रिश्ता
जब प्यार पिता से किया तो कहलायी अच्छी बेटी
प्यार भाई से किया तो बनी हमराज बहन
किया पति से प्यार, तो बन गयी पतिव्रता
बेटों से करके प्यार बनी ममतामयी मूर्ति
आखिर कैसे एक संबंध पर मिलता लांछन
बढ़ाया मित्रता का हाथ तो उठा चरित्र पर सवाल
समाज ! तुमने कभी खोल कर देखा है अंतर्मन का जाल

 #स्त्रीपुरुष