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पूर्णिमा की रात में मधुबन में सिसकियाँ भर भर न जान

पूर्णिमा की रात में मधुबन में सिसकियाँ भर भर
न जाने कौन भरता है आहें निधिवन में गीले नैनों से
कोई गगरी पनघट पर क्यूँ खाली पङी सखी कुछ हाल तो बोलो
वो बाँसुरी हरी रंग की कहो क्यूं नहीं किन्हीं अधरों पर
ये झूले जो टंगे मयूरपंखी किस कथा का गान करते हैं
कहो कौन रोता है जो ये वृंदावन के वट उस धुन पर नृत्य करते हैं
कथा कोई तो है सखियों जो यहाँ के मेघ घनश्याम बरसते हैं
बरसाने के मनिहारे भी कथा कुछ और कहते हैं
वो मटकी नंद आँगन में ढंकी नहीं रखी है कोई ममता यहाँ रोकर चुप हो चुकी है
हे सखी कुछ तो बोलो ये नयन किसके बहते हैं... 
 कौन रोता है
किसी के लिए!
#रोताहै #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
पूर्णिमा की रात में मधुबन में सिसकियाँ भर भर
न जाने कौन भरता है आहें निधिवन में गीले नैनों से
कोई गगरी पनघट पर क्यूँ खाली पङी सखी कुछ हाल तो बोलो
वो बाँसुरी हरी रंग की कहो क्यूं नहीं किन्हीं अधरों पर
ये झूले जो टंगे मयूरपंखी किस कथा का गान करते हैं
कहो कौन रोता है जो ये वृंदावन के वट उस धुन पर नृत्य करते हैं
कथा कोई तो है सखियों जो यहाँ के मेघ घनश्याम बरसते हैं
बरसाने के मनिहारे भी कथा कुछ और कहते हैं
वो मटकी नंद आँगन में ढंकी नहीं रखी है कोई ममता यहाँ रोकर चुप हो चुकी है
हे सखी कुछ तो बोलो ये नयन किसके बहते हैं... 
 कौन रोता है
किसी के लिए!
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