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"पिता के बिना होली" सब कुछ होकर भी कुछ नहीं है, प

"पिता के बिना होली"

सब कुछ होकर भी कुछ नहीं है,
पिता की तस्वीर के सिवा अब कुछ नहीं है..!

जिनके होने से हिम्मत का सागर था मुझमे,
अब सूखी नदिया भी कुछ नहीं है..!

पिता के बिना "होली" होली नहीं है,
ग़म ही ग़म भरा है खुशियों की टोली नहीं है..!

समझता था जिन चेहरों को अपना,
वो सूरतें भी अब भोली नहीं है..!

न साथ देता है कोई अब,
कोई हमजोली नहीं है..!

अपने ही उठा रहें हैं शस्त्र घायल करने को,
अपनेपन की अब कोई झोली नहीं है..!

त्यौहार के नाम पर रह गया एक दिन और खाली,
पिता के बिना "होली" होली नहीं है..!

©SHIVA KANT
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