बचपन की वो खिलखिलाहट दोस्तों की वो यारी थोड़ी पढ़ाई और ढेरों मस्ती ना जाने कहाँ खो गई कुछ कर दिखाने की ख्वाहिश सबको खुश रखने की वो उम्मीद बिना डरे सच कहने की वो छोटी सी हिम्मत ना जाने कहाँ खो गई नफरत जिसे कभी छू ना पाया हर किसी की बस खुशियां चाहा कहीं जो गैर भी दिखता उदास उसकी दर्द की बजह पूछता नादान दिल का वो मासूमियत ना जाने कहाँ खो गया वक्त की चाल ने ज़िन्दगी के सफऱ मे रिस्तो के भंवर मे खुद से ही उलझा दिया दुनिया की भीड़ मे खुद का अस्तित्व ही ना जाने कहाँ खो गया By - वैष्णवी माला 10/11/2022 ©vaishnavi Mala ना जाने कहाँ खो गया #SAD