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पगडंडियों पे चलके, चौराहे तक आया हूँ, मंजिल है किस

पगडंडियों पे चलके,
चौराहे तक आया हूँ,
मंजिल है किस ओर,
जाना है कहां?,
अभी तक जान न पाया हूँ,
मैं हूँ और बस मेरा साया है,
बाकियों को काफी पीछे छोड़ आया हूँ,
धूप छाँव का डर नहीं मुझे,
अंधेरों में भी सीना तान कर आया हूँ, 
रूठी है दुनिया मुझसे मेरी,
न जाने क्यूँ?,
इन्हीं कारणों का पता लगाने आया हूँ,
हांथ पकड़ कोई रास्ता बता दे,
कितना लंबा सफर तय कर आया हूँ,
या मैं चलूँ मन से मन की ओर,
कहीं खा न जाऊँ धोखा जैसे पहले भी खाया हूँ,
फिर लौट न आ मिलूँ कहीं वापस,
इतनी मेहनत करके जिसके लिए आया हूँ,
आ नहीं रहा समझ में कुछ भी,
क्या करूँ मैं बहुत घबराया हूँ,
एक दिशा सही मिल जाए,
देखेंगे फिर लोग मंजिल कैसे पाया हूँ,
पगडंडियों पे चलके,
चौराहे तक आया हूँ........
लेखक :- दीपक चौरसिया

©Deepak Chaurasia
  #my poetry
#पगडंडियों पे चलके,
चौराहे तक आया हूँ,
मंजिल है किस ओर,
जाना है कहां?,
अभी तक जान न पाया हूँ,
मैं हूँ और बस मेरा साया है,
बाकियों को काफी पीछे छोड़ आया हूँ,
deepakchaurasia7439

vishwadeepak

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#my poetry #पगडंडियों पे चलके, चौराहे तक आया हूँ, मंजिल है किस ओर, जाना है कहां?, अभी तक जान न पाया हूँ, मैं हूँ और बस मेरा साया है, बाकियों को काफी पीछे छोड़ आया हूँ, #Poetry

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