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"कलम" मैंने अपने सारे आँसू छुपा रखे अलमारी में।

"कलम"
 मैंने अपने सारे आँसू छुपा रखे अलमारी में। 
तुम भी सुन लो कलम प्यारी हम तुम बिन अंधियारे में।। 
कब सुनोगी दिल की बात प्यास बहुत है आँखों में। 
शब्द बहुत है ज़ख़्मी कहने को क्यों नहीं आ रही झासें में।। 

कलम सुनो तुम बात हमारी मत बैठो बंजारेपन में। 
ऊँगलियां मेरी तड़प रही है बहुत कुछ तुम्हें बतलाने में।। 
पेपर भी तो पड़ा हुआ है सदमा और वीराने में। 
प्यास बुझा दो उसकी तुम लिपट जाओ अक्षर बना दामन में।। 

तोड़ दो मौन आज अपना तुम रच दो इतिहास ज़माने में। 
मत दूरी अपनाओ मुझे से भर लो मुझको झट से बाँहों में।। 
चीख़ रहे हैं अंदर से शब्द पड़े मन के मैखाने में।
तुम्हीं तो हो साथी संगी फ़िर क्यों हो अनजाने में।।
मधु गुप्ता "अपराजिता"

©Madhu Gupta
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