उम्मीदों की देहरी पर इच्छाएं भीख मांगती, बाजारों की स्पर्धा में हलचल सीमा लांघती चैतन्य विमुख है रोजगार के आगे शिक्षा के प्राण निकल रहे भ्रष्ट नीति के आगे योजनाएं हैं सब अच्छी लेकिन भ्रष्टाचार निगल रहा लेने देने के आगे है सब विफल रहा! नीति पर कुनीति भारी है शासन सम्मुख अजब लाचारी है, कानून सम्मत सब ठीक बाकि सदियों की बीमारी है! जड़ और चेतन सब घूम रहा कोने में बैठा बैठा कविरा झूम रहा! कब तक रहे मौन और आखिर कब तक चीखेंगे, क्या कभी गलतियों से भी अपनी हम सीखेंगे! स्वरचित✍ कुमार रमेश 'राही' 831871888 #nojotohindi #sawaal #rishte #bhrashtachar #rajniti