जब भी मैं खामोशियों से गुफ्तगु करता हूँ तुझ को मेरे महबूब अपने रुबरु करता हूँ। तेरे दीद की ये तरकीब है कारगर बड़ी उठती है जब भी तलब बार बार हूबहू करता हूँ। खामोशियों से गुफ्तगु