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सूखे पत्ते राह को ढक रहे हैं, अच्छा है। उस मोड़

सूखे पत्ते राह को ढक रहे हैं, अच्छा है।

 उस मोड़ से आगे, अब मैं नहीं जाता।

 चिड़ियों के आवाजों के साथ पायल की छन छन, मुझे अच्छी लगती है। 
आब सिर्फ चिड़ियों की आवाज रह गई है।

फलक से ढलता आफताब उस हिज्र की याद दिलाता है,
उस वक्त पत्ते हरे थे, 
शायद।
बहुत ठहर गया तेरी यादों में,
 अब पता नही।

बसंत की सबा अब जिस्म को तो छुती है,
पर जज्बात फरेब सी लगती है।

उस मोड़ से आगे पैर पीछे होने लगते हैं।
 राह पर आज भी सूखे पत्ते हैं, हटे नहीं हैं,

शायद, 
मेरे इंतजार में।
अच्छा है। © Sajal Kumar Gupta
सूखे पत्ते राह को ढक रहे हैं, अच्छा है।

 उस मोड़ से आगे, अब मैं नहीं जाता।

 चिड़ियों के आवाजों के साथ पायल की छन छन, मुझे अच्छी लगती है। 
आब सिर्फ चिड़ियों की आवाज रह गई है।

फलक से ढलता आफताब उस हिज्र की याद दिलाता है,
उस वक्त पत्ते हरे थे, 
शायद।
बहुत ठहर गया तेरी यादों में,
 अब पता नही।

बसंत की सबा अब जिस्म को तो छुती है,
पर जज्बात फरेब सी लगती है।

उस मोड़ से आगे पैर पीछे होने लगते हैं।
 राह पर आज भी सूखे पत्ते हैं, हटे नहीं हैं,

शायद, 
मेरे इंतजार में।
अच्छा है। © Sajal Kumar Gupta
sajalgupta6499

Sajal Gupta

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