नियति की परिभाषा संघर्ष संघर्षो की तपती ज्वाला, जब तुझे तपाती जाएगी। तू देख जरा अंतिम क्षण वो, तुझे सजा कर लाएगी।। जो डरा तो अब संघर्षों से, तो कभी सम्भल ना पाएगा। तेरे जीवन का प्रत्येक पल , तुझको ही चुभता जाएगा।। तू सोचेगा की काश अगर, संघर्षों से भिड़ जाता मै। तो लोग नही हँसते मुझपर, खुद से ही मुस्काता मै।। अरे माँ ने तेरी नियति से, नो माह तक संघर्ष किया। संघर्षो के प्रतिफल में ही , उसने तुझको जन्म दिया।। अरे नियति है यह इसमें तो, सँघर्षो का आना जाना है । अंतिम क्षण जब मोत लिखी , तो काहे का घबराना है।। गीता को तो देख जरा, वह बहता निर्मल सा पानी सुन। अर्जुन ने जो सुनी कृष्ण से , वह निष्काम कर्म की वाणी सुन।। प्रत्यंचा तू चढ़ा कर्म की , सँघर्षो पर वार तो कर। रणभेरी बज उठे जीत की, ऐसी तू ललकार तो कर।। तू सिख जरा सूरज से कुछ, जो अनवरत ही चलता जाता है। इक तमस की रात के बाद, जो स्वयं उजाला लाता है।। सीखे इस प्रकृति से कुछ, जो सदैव सँघर्षो से टकराती है। पतझड़ में जो बांझ सी दिखती, ऋतुराज में पल्लवित जो हो जाती है।। अरे सिख बया से सँघर्षो में , कैसे नीड़ वह बुनती है। जो सँघर्षो से जीत गया, नियति भी उसी को चुनती है।। तू सँघर्षो के पावन तप में, कर्म आहुति देता जा। ईश्वर से इस कर्म के बदले , विजय परिणीत लेता जा।। by-praveen mgr नियति की परिभाषा संघर्ष