दस्तूर- ए - इश्क़ है कि महबूब को तड़पना पड़ेगा , महबूबा की चाह में , दर दर भटकना पड़ेगा ग़र ना हो यक़ी , तो इतिहास पलट कर देख पर हक़ीक़त का सामना तो करना पड़ेगा बेशुमार है दौलत इसमें दर्द की, उस दर्द को तुझे महसूस करना पड़ेगा हो जाएगा फ़रामोश तू , तुझे इस जहाँ को भूलना पड़ेगा। और रखता है , जो ये मुस्कान अपने ओंठों पर हर वक़्त तब हर वक़्त अपनी आँखों को नम रखना पड़ेगा तू ग़र बनेगा महबूब , तो तुझे तड़पना पड़ेगा होगी तलब तुझे महबूब के एक दीद की तब , उसके दीदार के लिए तुझे तड़पना पड़ेगा और जो लिए फिरता है , गिलास दूध का अपने हाँथों में तुझे ज़हर का जाम तब पीना पड़ेगा तू इश्क़ करके देख , तुझे बदलना पड़ेगा सहना होगा बहुत कुछ , और तुझे बदनाम भी होना पड़ेगा अरे तू इश्क़ तो कर , तुझे इश्क़ में रोना पड़ेगा तुझे तड़पना ही पड़ेगा ।।। प्रशान्त दस्तूर ए इश्क़ #प्रशांत आर्यन #मेंशन योर लव # poem own creation