में करवां का कारीगर ,किश्तों में मंज़ीलें चुनता हूं ; काफ़िरों के बस्ती में मज़ारें खोजता हूं | में दबती आवाज़ हूं कोई,सिर्फ शून्य में जो चीखे है ; चट्टानों से लहरों सा टकराके बिखरे है | में वक़्त की वो बेढ़ीयां जो उसे ना रोक पाई है; फ़िक्र का वो इत्र, ना मुझको छोड़ पाई है | में अंत का वो आदी हूं, जो प्रलय का आगाज़ है ; इल्म है इलाज का, पर मर्ज़ मेरा साज़ है | में हूं , तो है ये जान, और जान से है ज़िन्दगी; में रेत हूं ,जो मुट्ठीओं में कैद हूँ और आज़ाद भी | #cynosure