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व्यथित था ये मन मेरा किस बात की दरकार थी उम्मीद का

व्यथित था ये मन मेरा
किस बात की दरकार थी
उम्मीद का परिंदा था पाला 
किस बात की फिर ललकार थी
इन धमनियों में जो तेज दौड़ा
उस लहू का शुक्रिया
जो मन की मन में ही दबाता 
उस शख्स की बस हार थी
व्यथित था ये मन मेरा
किस बात की दरकार थी
इन आँखों में जो चमकता है
वो ख्वाब है या मन की आग 
मैं हर तरफ से था अभागा
पर गहरी उसकी बातों की मार थी
तुम जो ठहरो और मंजिल तक चलो
सफर में अंतिम पग मेरे संग धरो
मैं फिर चीख सुना सकूं
अपने मन के सारे हाल
और उम्मीद का परिंदा भी 
जो ले वो आजादी की आस थी
व्यथित था ये मन मेरा
किस बात की दरकार थी #Freedom #poem #Shayari
व्यथित था ये मन मेरा
किस बात की दरकार थी
उम्मीद का परिंदा था पाला 
किस बात की फिर ललकार थी
इन धमनियों में जो तेज दौड़ा
उस लहू का शुक्रिया
जो मन की मन में ही दबाता 
उस शख्स की बस हार थी
व्यथित था ये मन मेरा
किस बात की दरकार थी
इन आँखों में जो चमकता है
वो ख्वाब है या मन की आग 
मैं हर तरफ से था अभागा
पर गहरी उसकी बातों की मार थी
तुम जो ठहरो और मंजिल तक चलो
सफर में अंतिम पग मेरे संग धरो
मैं फिर चीख सुना सकूं
अपने मन के सारे हाल
और उम्मीद का परिंदा भी 
जो ले वो आजादी की आस थी
व्यथित था ये मन मेरा
किस बात की दरकार थी #Freedom #poem #Shayari
rahulyadav1040

Rahul Yadav

New Creator