✍️✍️ मैं जमाने से कब का कूच कर गया होता मैं पत्थर हो गया वरना मैं मर गया होता ✍️✍️ मोम को देखा मैंने आँच से पिघलते हुए आग सा हो गया वरना बिखर गया होता ✍️✍️ है जमाने की ही मेहनत मुझे बनाने में फूल को रौंद कर खुशबू विनय उड़ाने में ✍️✍️ हर एक पंखुड़ को खुद तेजाब से धोया मैंने ज़रा भी प्यार रह जाता तो खर गया होता ✍️✍️ रात आई तो चांद बन के वो टहला सर पर रोशनी होती तो यूं ही गुजर गया होता ©writervinayazad ✍️✍️ मैं जमाने से कब का कूच कर गया होता मैं पत्थर हो गया वरना मैं मर गया होता ✍️✍️ मोम को देखा मैंने आँच से पिघलते हुए आग सा हो गया वरना बिखर गया होता ✍️✍️ है जमाने की ही मेहनत मुझे बनाने में