भेजा नहीं कोई लेकिन ख़त लिखता रहा हूँ मैं छलकते बादल,घने अंधेरों में तन्हा तेरा तसव्वुर कर बैठा रहा हूँ मैं सुबह आती ठंडी हवा की मौजूदगी में क़लम,डायरी के साथ चाय पीता रहा हूँ मैं बीते दिनों को अल्फ़ाज़ों में सजाकर ख़ामोश ज़ुबान लिए कहता रहा हूँ मैं तेज़ धड़कनों को सीने में दबकर, निकलते आँसू पलकों में छिपा कर किस किस तरह जीता रहा हूँ मैं भेजा नहीं कोई लेकिन ख़त लिखता रहा हूँ मैं भेजा नहीं कोई लेकिन